मनोज कुमार अग्रवाल
एलएन मेडिकल कॉलेज में 15 वर्षीय कक्षा ग्यारहवीं के छात्र ने छत से कूदकर आत्महत्या कर ली। यह बेहद दुखद और दिल दहला देने वाला मामला है। इस नाबालिग छात्र की आत्महत्या के पीछे रैगिंग एक बड़ा कारण बनता नजर आ रहा है। राजधानी भोपाल में स्थित एलएन मेडिकल कॉलेज में हुए इस दर्दनाक हादसे ने एक बार फिर से रैगिंग के भयावह दुष्प्रभाव को उजागर कर दिया है।
रात पौने दो बजे के आसपास छात्र के मेडिकल कॉलेज की इमारत से कूदने की सूचना मिली। घटनास्थल पर पहुंची पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और डीआईजी पुलिस ने तुरंत इस मामले की जांच के आदेश दिए। मृतक छात्र की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आत्महत्या की पुष्टि हुई, लेकिन इस भयावह घटना के पीछे रैगिंग का गंभीर आरोप लगाया जा रहा है।
शैक्षिक संस्थानों में रैगिंग की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। मानसिक और शारीरिक शोषण की इस कुप्रथा ने कई मासूम जिंदगियों को निगल लिया है। समाज में इस प्रकार की अमानवीय प्रथाओं को जड़ से खत्म करने की आवश्यकता है।
राजा पीपल ने कहा कि उन्होंने इस घटना की शिकायत कॉलेज प्रबंधन से की थी, लेकिन संस्थान ने इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। “जानकारों के अनुसार, छात्र की मौत के पीछे सीनियर छात्रों का शोषण भी एक बड़ा कारण है।”
राजा पीपल ने कहा कि इस घटना को लेकर कॉलेज प्रबंधन सतर्क होता तो शायद यह हादसा टल सकता था।
रिपोर्ट के अनुसार, छात्र के माता-पिता ने भी प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग की है।
“अगर स्कूल में शिक्षा पूर्ण है, तो वहां इस तरह की घटनाएं नहीं होनी चाहिए।”
शिक्षाविदों का मानना है कि कठोर कानूनों के बावजूद रैगिंग जैसी घटनाएं रोकने में संस्थान असफल हो रहे हैं।
इस समस्या का समाधान केवल कानून से नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक जिम्मेदारी से संभव हो सकता है। छात्रों में नैतिक शिक्षा और अनुशासन की भावना विकसित करने की जरूरत है।
अगर समय रहते इस पर कड़ा संज्ञान नहीं लिया गया, तो आने वाले समय में यह समस्या और विकराल रूप ले सकती है।
शैक्षणिक संस्थानों को “शिक्षा” के वास्तविक अर्थ को समझने की जरूरत है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)