नज़ीर बनारसी की शायरी

रूत्ता-रूत्ता इश्क़ इस मंज़िल में लाया है मुझेदर्द उठता है किसी को और तड़प जाता हूं मैं अंधेरा मांगने आया था रोशनी की भीखहम अपना घर न जलाते तो और…